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26 जनवरी के समाचार पत्र में दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर तेजेन्द्र खन्ना का बयान पढ़ा। लिखा था इण्डिया गेट पर रेप पीडिता के समर्थन में जुटने वालो पर पुलिस द्वारा बल का प्रयोग, लाठी चार्ज, आंसू गैस का प्रयोग आदि से बचा जा सकता था। उन्हें भी तकलीफ थी कि जिस तरह से शांत पूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस ने बल प्रयोग किया। उनके इस ताजा बयान से एक बार फिर जख्म हरे हो गए।
जहन में सवाल उठता है जब दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दिक्षित, पुलिस की इस कार्यवाही की निंदा कर रही थी। जनता को बता रहीं थीं कि पुलिस विभाग उनके मातहत नहीं है/ गृह मंत्री भी कह रहे थे उनके भी दो- दो लड़कियां हैं। उन्हें भी इस तरह से लाठी चार्ज पर दुःख था। प्रधान मंत्री भी अपना दुःख प्रकट कर चुके थे। तब यह पुलिस वाले किसके कहने पर इंडिया गेट पर लोगो पर बल प्रयोग कर रहे थे। क्या दिल्ली की पुलिस निरंकुश हो गयी थी अगर ऐसा ही था तब उन अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यों नहीं की गई और अगर पुलिस निरंकुश नहीं हुई थी यह सब सरकार में बैठे हुए इन जिम्मेदार लोगो की मर्जी से हो रहा था तब इस तरह के घडियाली आंसू वहाने का औचित्य क्या है। कहीं ऐसा तो नहीं एक तरफ तो पुलिस की पीठ थपथापाते रहते हैं और दूसरी तरफ जनता के अगले इलेक्शन में वोट चाहिए तो जनता को भी पुचकारते रहते हैं। शायद ऐसा ही कुछ है तभी समय- समय पर इसतरह के घडियाली आंसू बहा कर दिखाते रहते हैं।
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