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जो जस करहि सो तस फल चाखा

rastogikb
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कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ।

जो जस करहि सो तस फल चाखा ॥

सकल पदारथ हैं जग मांही।

कर्महीन नर पावत नाहीं ॥



कर्मण्ये वा धिकारस्ते

महाफलेषु कदाचन

परित्राणाय साधुनाम्

विनाशाय च दुष्क्रताकर्मण्ये वा धिकारस्ते


बात शुरू करता हूँ मनुष्य के जीवन में कर्म की प्रधानता से। चाहें रामचरित मानस हो या गीता, दोनों में ही कर्म को ही प्रधान बताया गया है। हम अपने कर्मो से ही अपने भाग्य को बनाते और बिगाड़ते हैं। हमें कर्म के आधार पर ही उसका फल प्राप्त होता है। कर्म सिर्फ शरीर की क्रियाओं से ही संपन्न नहीं होता बल्कि मन से, विचारों से एवं भावनाओं से भी कर्म संपन्न होता है। जीवन – भरण के लिए किया गया कर्म ही कर्म नहीं है।  बल्कि हम जो आचार , व्यवहार अपने माता -पिता, बन्धु ,मित्र , रिश्तेदार के साथ करते हैं वह भी कर्म की श्रेणी में आता है।

जब हम अच्छे कर्म करते हैं तब उसका प्रतिफल भी अच्छा  मिलता है और जब हम कुछ  गलत  कर देते हैं तब प्रतिफल में हमें भी कष्ट मिलते हैं।

महाभारत एक महान ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ हमें कर्म करने की प्रेरणा देता है। महाभारत में युद्ध शुरू होने से पहले भगवान

कृष्ण ने  अर्जुन को जो ज्ञान  दिया उसमे भी उन्होंने कर्म करने के लिए ही अर्जुन को प्रेरित किया है। दूसरी विशेष बात यह कि अगर आपको फल चाहिए तो आपको ही कर्म करना होगा। भगवान कृष्ण पांडवो के साथ थे परन्तु उन्होंने कहा कि मै नहीं लडूगा। सीधी से बात है तुम्हारी लड़ाई है तुम्हे लड़नी होगी क्योकि फल भी तो तुम्हे ही चाहिए फिर दूसरा क्यों लड़े। चूँकि पांडव धर्म की लड़ाई लड़ रहे थे इसलिए उनकी जीत हुई। इस अभिमान की लड़ाई में  पांडवो ने कौरवो का परिवार खत्म कर दिया परन्तु देखें विधि का विधान कि पांडवो का भी पूरा परिवार समाप्त हो गया। यह तो भगवान कृष्ण थे जिन्होंने उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के बच्चे को बचा लिया अन्यथा पांडवो के बाद उनका भी नाम लेने वाला कोई नहीं बचता। बात वहीँ आ जाती है कि उन्होंने अपने भाईयो को खत्म कर उनका परिवार समाप्त किया तो इसका दंड उनको भी मिला।

एक दूसरा उदहारण, कहते हैं कि जब मोहम्मद गजनवी ने सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण किया तब कई हिन्दू राजाओ की सेना उसे बचाने के लिए वहां पर पहुँच गई पर पंडितो के अंधविश्वास के कारण ही मोहम्मद गजनवी ने मंदिर को लुटा और नष्ट कर दिया। बताते हैं पंडितो को विशवास था कि अगर गजनवी ने आक्रमण किया तो भगवान् शिव अपना तीसरा नेत्र खोल कर उसको भस्म कर देंगे। बात वहीँ  आ जाती है कि तुमने उनका मंदिर बना कर उन्हें वहां बैठाया है तुम उससे लड़ो, भगवान् शिव क्यों उससे लड़ने के लिए आयेंगे।


अब बात करता हूँ वर्तमान की। आफिस से घर जाते समय अक्सर देखता हूँ बाजार में  सबसे ज्यादा भीड़ नजर आती है केमिस्ट की दुकान पर। ऐसा लगता है मुफ्त राशन की दुकान हो। किसी भी दूकान पर इतनी भीड़ नहीं नजर आती है जितनी केमिस्ट की दुकानों पर।   केमिस्ट शाप परहमेशा लोगो की भीड़ देखता हूँ। क्यों,  सोंचे , सब कर्मो का फल है। अपने एक दोस्त के यहाँ गया, पता लगा उनकी मां के घुटने का आपरेशन हुआ है। मैंने पूछा  आपने उन्हें गवार पाठा क्यों नहीं खिलाया, आपरेशन  की जरुरत ही नहीं पड़ती, मै तो आपको बता के गया था कि तीन महीने खिला दो, घुटना सही हो जायेगा। बेकार में हजारो रूपये खर्च हुए और शरीर की पीड़ा अलग से, बोले अरे क्या है यह देखो एक लाख रूपये वसूल लिए एक से हैं। यह है आज की मानसिकता। पूरा परिवार बीमार पड़ जाये खुद अस्पताल में एडमिट हों, डाक्टर और दवाइयों पर हजारो – लाखो रूपये खर्च हो जाय पर छल -कपट, हेरा-फेरी कर के धन कमाने से बाज नहीं आयेंगे।

प्रश्न उठता है क्यों लोग इतना बीमार हैं। सब कर्मो का खेल है। यह यूँ ही नहीं बीमार है। इनके कर्मो ने इन्हें बीमार किया है। शरीर में जितनी भी बीमारियाँ होती है यह सब कर्मो का प्रतिफल होती हैं। लेकिन कोई नहीं सोंचता कि यह सब उनके कर्मो की देन है फिर भी लगे रहते हैं वन टू का फॉर करने के चक्कर में। हेराफेरी करके कमाने के चक्कर में। इन्हें उस बईमानी  की कमाई में ही स्वाद नजर आता है। भ्रष्ट तरीके से की गई कमाई में जो स्वाद इन्हें प्राप्त होता है वह ईमानदारी की कमाई में इन्हें नजर नहीं आता। चाहे कितने भी शारीरिक कष्ट . बीमारियाँ इन्हें , इनके परिवार को उठाना पड़े पर यह समझ में नहीं आता कि यह सारे कष्ट इस बेईमानी की कमाई के कारण ही हो रहे हैं।


इंसान अगर सच्चाई, ईमानदारी से जीवन जिए तो उसे इतने शारीरिक कष्ट ही न हों। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता। लोगो से कहता हूँ एक बार मनसा वाचा कर्मणा से सच्चाई के रास्ते  पर चल कर देखो स्ववं आभास हो जायेगा।

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